Saturday, September 26, 2009

जरा सोचें और अच्छे के लिए एक-जुट हों -एक विचार :क्रमांक 7

कई बार इतिहास ने देखे हैं वो मंज़र जब !

लम्हों ने खता की सदियों ने सजा थी पाई !!

जरा सोचिये.......

**सलमान टीवी शोव्स मैं खुले आम नंगा बदन दिखा रहे हैं .....आप चुप हैं और भारतीय संस्कृति रो रही है......

***जसवंत साब को समझ नहीं आया कि सरदार को कठगरे मैं रख कर वो कूद ही गए mediabazi मैं ......... जरा सोचिये। राष्ट्रिय निर्णयों मैं मौखिक भाष लिखित से ज्यादा प्रभावी होती है.........

पिल ७२ का एड मात्रत्व को कहाँ ले जायगा .दवाओं का टीवी एड क्यों जिसको बिना मेडिकल प्रेस्क्रिप्शन के नहीं लिया जा सकता है। जरा सोचिये......इससे पहले कि देर हो जाए .... दवाएं परचूनी का आइटम नहीं ....

Thursday, September 24, 2009

एक विचार -क्रमांक 6

थोड़ा-२ आगे बढें, रुकें और सोचें कि रास्ता सही चुना है कि नहीं -यह केवल पहले दौर मैं करना है :निर्णय लेने के दिन ही .acid टेस्ट -क्या ये हम सबके सामने कर सकते थे ,यदि दिल कहे हाँ तो आप सही रस्ते पर हैं । ये मेरे नाना जी ने १९८२ मैं कहा था :

यदि जीवन जीने के पीछे कोई तर्क नहीं है !
तो रामनामी बेचकर खाने और देह व्यापर करने मैं कोई फर्क नहीं है !!!!!!

हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन मैं कोई दीदावर पैदा !!

Friday, September 18, 2009

एक विचार :क्रमांक-5

बड़ी से बड़ी समस्याओं का निदान हमारे बिल्कुल सामने घास के एक टुकड़े के समान विद्यमान होता है , मगर हम उसे निहायत बेकार मान कर ठुकरा देते हैं । और समाधान के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं । तिनके की भाषा हमें समझनी चाहिए -अमूमन स्थिर तिनका संदेश देता है कि थोड़ा इंतज़ार करें -हल स्वतः निकलेगा > पल पल उल्टा-सीधा होने वाला तिनका हमें विकल्प खोजने को प्रेरित करता है तथा स्थाई रूप से पलट गया तिनका हमें वापसी का संकेत देता है-जितना बचा है उसे बचाओ और अच्छे समय का इंतज़ार करो.

क्या हमें खुश रख सकता है !!!!

सीधी -सरल बात

कभी -२ सभी सोचते हैं की सब कुछ ऐसे ही चले कि कोई परेशानी न हो ,पर भइया ऐसा होता नहीं । सो हम अपनी किस्मत को,बीबी को , पति को ,मां-बाप को, और परिस्तिथिओं आदि -२ को दोषी मानते रहते हैं ।
क्या करें क्या न करें , समझ ही नहीं आता ।
जब भी ऐसा कुछ मन मैं आए तो एक सरल सूत्र है-

अपने को दूर से देखो और साथ ही साथ दूसरे लोगों को भी।
इन संकेतों को पड़ने कि कोशिश करो तो पाओगे कि सब के हालत एक जैसे हैं । मक्तूब ! नियति लिखी जा चुकी है । और वह ये है कि सब्र रखो सब कुछ आपके अनकूल होने वाला है.

Thursday, September 17, 2009

एक विचार -क्रमांक 3

अन्तोगत्वा जीवन एक वो सरल प्रक्रिया है जो हमें अपनी पूर्णता प्राप्त करने मैं न सिर्फ़ सहायक होती है बल्कि हमें ब्रह्माण्ड का एक अटूट हिस्सा बनाकर निराकार कर देती है .

मनपसंद कलाम

बेहेतरीन

यादगारें

न तू खुदा है , न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा !

दोनों जब इंसान हैं तो क्यों इतने हिजाबों मैं मिलें !!

मजबूर थे ले आए किनारे पे अपना सफीना !

दरिया जो मिले हमको -पायाब* बहुत थे !!

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल !

हार जाने का पूरा होंसला है मुझे !!

हमसफ़र चाहिए मुझे कोई हुजूम नहीं !

एक मुसाफिर भी पूरा काफिला है मुझे!!

रुके तो गर्दिशें भी उसका तबाफ ** करती हैं !

चले तो हमको ज़माने ठहर के देखते हैं !!

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी !

लोग क्यों वहां जश्न मानाने आए !!

सुना है लोग उनको आँखें भर के देखते हैं !

सो उनके शहर मैं कुछ दिन रुक के देखते हैं !!

सुना है बोलते हैं, तो फूल झरते हैं !

ये बात तो चलो उनसे बात कर देखते हैं !!

* daldal

**parikrama

Wednesday, September 2, 2009

एक विचार-क्रमांक -2

दुनिया मैं जितने प्रकार के लोग हैं , उनका प्रोफाइल -योग (क्या मिला और क्या खोया ) का औसत सामान है , इसलिए काहे की मारामारी -मस्त रहिये , एक-दुसरे की मदद करिए और अपनी योग्यता बढा कर पात्रता बढाइये और मन-माफिक पाइए

क्या मिला !

इस आखिरी लम्हे तुझे क्या मिला ,
जो भी मिला ख़ुद को खोकर ही मिला !

तू ख़ुद को होने की गलतफहमी छोड़ दे ,
जिन्दगी महज़ सांसों का है सिलसिला !

प्यार कैसे हमारा होता औ चढ़ता परवान ,
दर्-रोज़ होता था फालतू का शिकवा गिला !

फूल की किस्मत को क्या कहिये "अजय "
सिर्फ़ खुशबुओं को ही सही बाज़ार मिला !!

Tuesday, September 1, 2009

अच्छा होने की खुश - फहमी

अच्हों को अच्हा होने की खुशफहमी उन्हें देवत्व के मोह से ग्रसित करती है और वे अकले ही चलना चाहते हैं अतःवे उसी तरह पतन का शिकार होते हैं जैसे बुरा होने की ग़लतफ़हमी बुरे लोगों को अकाल म्रत्यु का ग्रास बनाती है ।
यदि ऐसा न होता तो राम और कृष्ण क्यों सत्कार्य मैं बंदरों , भालुओं ,गिरिवासियों और ग्वालों को अपना साथी बनाते.

कहाँ जायेगा फ़रिश्ता

ये तेरी मौत को भी बड़ी सफाई से खुदकुशी साबित कर देंगे ,
कई सारे काले कोट वाले हाथ मैं संभिधान ले कर बैठे हुए हैं !

बैठाया ,तिलक लगाया पुए खिलाये जब लकड़ी की पाटी पर ,
जीवन मैं सिर्फ तब लगा हम कुंवर हैं - तख्ते -ताउस पे बैठे हुए हैं !

गैरों की खींच कर और ऊँची और ऊँची हमने कर लीं अपनी कुर्सियां ,
आईने ने तब बताया - कि ख्यालात हमारे किस कदर बैठे हुए हैं !

कहाँ छुपेगा ,जायेगा ,कब तलक डरावने मंजरों से बचेगा तू अजय ,
हर तरफ चाकू लेकर लाठी लेकर औ मशाल लेकर लोग बैठे हुए हैं !!