Thursday, December 17, 2009

एक विचार: क्रमांक 09

अद्रश्य होना,पलायन करना, टाल-मटोल करना और फिर अपने मंतव्य को न जानने की शिकायत करना ठीक नहीं। जितना जिएँ लक्ष्य जरूरी है। डूबता - उतराता वही है जो भंवर मैं फंसा है। एक ताज़ा कलाम देखिये:

पास सारा कुछ है ओ आदम तेरे पास भी, खुदा मैं जो तलाशता है !
वर्ना दुनिया के मेले में खुद का अकेलापन तुझे क्यूँ इतना काटता है !!

Monday, December 14, 2009

एक विचार :क्रमांक 8

जितना बंधने /बांधने की कोशिश करो संबंध हाथ से बालू की मानिंद फिसल जाते हैं । कारण है की हम अपनों को हमेशा चिपकाये रखना चाहते हैं । संबंधों के वृक्ष को केंद्रित कर हम उसको बौना बना देते हैं और भूल जाते हैं कि बोनसाई वृक्ष एक-आद फल देते हैं जिनका उपयोग नहीं किया जा सकता है।
मक्तूब : फल वृक्ष से जितना दूर लगेगा , वृक्ष उतना ही लंबा होगा।
संबंधों के फल नारियल सी मिठास देंगे और अपने विस्तार में सबको छाया देंगे जैसे पीपल और वट इत्यादि । इति .......

ग़ज़ल :ऐसे कम ही हैं

कोई क़म नहीं सितारे फलक पर लेकिन ,

अंधेरों में रास्ता दिखाएँ ऐसे कम ही हैं !

हर रोज़ जमाना अपनी रफ़्तार बदलता है ,

ज़माने की रफ़्तार बदल दें ऐसे कम ही हैं !

कोई भी/कोई नहीं अपना /पराया होता है ,

एक ही नज़र से सबको देखे ऐसे कम ही हैं !

बहुत हैंबात बिगाड़ने वाले दुनिया में अजय,

बिगरे को बना दें अब लोग ऐसे कम ही हैं !!