Sunday, November 7, 2010

लिखो ऐसा जो सबके काम का हो !:ग़ज़ल

गजल

लिखो ऐसा जो हो सबके काम का औ कल आज कल का हो ,
यकीन मानिये, ये मेरी और आपकी नियति को तय करेगा!

एक बहुत ही छोटे/चर्चित वर्ग को तो कल या आज जाना ही है,
बड़े वर्ग का अपेक्षित हिस्सा ही हर हाल ही इस प्रलय में बचेगा!

हमने सुना पिछली बार सिर्फ मनु-इडा -श्रद्धा ही बचे थे प्रलय में,
तो सोचना है कि हमारे बड़े वर्ग में से अब कौन -कौन ही बचेगा !

यानि कि हर तरह कि शक्सियत मिट जाएँगी आज के दौर से तो ,
इंसानियत के नुमैंदों को कौन आगे इस कायनात पे सजदा करेगा !

दुनियावी बातें आजकल एक अज़ब शक्ल में सामने आ रही हैं अजय ,
सो लिखो/पड़ो ऐसा जो दोज़ख के बाद इन्सान का रास्ता तय करेगा!

Monday, October 18, 2010

हम सच -मुच हैं !!

हम मैं से ज्यादातर

एक-दो या हद से हद तीन कमरों के फ्लैट

में रहते हैं -

हम मकान में नहीं , मकान के भ्रम

में रहते हैं !


किसी ग़लतफ़हमी का शिकार न हों

तो हम में से अधिकतम

शाम घर वापसी पर रीते हो जाते हैं

उम्र से पहले ही बीते

हो जाते हैं !

हम जबरन समझौता कर

पति / पत्नी ,एक-दो अदद बच्चों

के साथ रहते हैं ,

किन्तु वस्तुतः हम अकेले होते हैं !


रविवार की छुट्टी में -

घर का काम निबटते हैं

बचे समय में पैसों को दो का चार

करने की जुगत में लग जाते हैं !

सच में हम कभी जीते ही नहीं हैं /

जीते है लगते हैं ,

हमारे आराम बैंक - किश्तों पे पलते हैं !


मित्रों तो क्या करें -

वक्त के इस मिजाज़ न घबराएँ

इस वक्त को मानस में न स्थाई रूप से सजाएँ

और चुपके से अपने बन जाएँ !

सुबह जब भी मिले मौका

तो बेमतलब निकल जाएँ

वृक्ष देखें /सुनें कलरव /सन्नाटे के गीत

हरी घास पे घूमें / अपने को थोड़ा -

बहुत ही पायें !

दोस्तों इतना भर काफी है

यह आपकी भीतरी आपाधापी को

कुछ तो कम करेगा ही,

भीतर के घावों को कुछ तो भरेगा ही !


में मानता हूँ कि इस मुश्किल दौर में

हम पत्थर बन चुके हैं

लेकिन अगर हम खुद को थोड़ा बहुत उकेर लें

तो हर पत्थर एक जीती जागती मूर्ति है =

जो हम सच-मुच में हैं !






Friday, October 8, 2010

न चिड़ियाँ बचीं न खेत

न चिड़ियाँ बचीं न खेत
एक कहावत थी -
चिड़ियाँ चुंग गयीं खेत
अब न चिड़ियाँ बचीं न खेत
क्या चुगें !
पहले जंगल थे घने
आदमी थे बिखरे-बिखरे बसे
अब आदमी हो गए घने
और जंगल बिखरे-बिखरे !
हमारे भीतर के हालात भी हो चले हैं
चिड़ियों/जंगल की तरह
आदमी के भीतर आ गयी है
उमस भरी गर्मी
भीतरी कोलाहल इतना कि-
शोर मापने की मशीनें जबाब दे चुकी हैं
अब हमारे भीतर भी कुछ नहीं उगता
जो भी थोडा बहुत उपजता है
फलता नहीं है !

Monday, September 27, 2010

मुफलिसी (फक्कडपन ) क्या है !

मुफलिसी (फक्कड़पन ) क्या है !
किसी ने ठीक कहा कि-
दोपहर की रौशनी में भी
कुछ लोग एसी और लाइट जला कर
सोते हैं !
उन्हें मेरा कहना है कि -
चौखट , दीवारों और छतों के भी बिना भी
कुछ लोग रहते हैं !
मुफलिसी हल्के अर्थ में लिया जाता है
यह वस्तुतः शरीर को अलग कर
उसको आत्मा से जोड़ना है
यह जाने हुए भी
खुद को परम सत्ता से जोड़ना है !
हमारी जन्म म्रत्यु का प्रत्यारोपण
मोक्ष में निहित संयोग है
और मुफलिसी
जीवन का असली योग है

Friday, September 17, 2010

ग़ज़ल : उलट-बांसी

ये अजीब शहर है हमेशा धोखा ही देगा तुम्हें

अजनबी सुनी बातों का हिसाब रखना


नाईट मैच की रौशनी की तरह यहाँ

दिन में रात के लिबास में ही रहना




















Tuesday, September 14, 2010

ग़ज़ल :ता-ता थैया -ता ता थैया / बेकार की सरकार भगैया

ता-ता थैया , ता-ता थैया ,

बेकार की सरकार भगैया !

कश्मीर के लोग हैं भइया,

बेकार की सरकार भगैया!

जाति-गर्णा :जीत-जितैया ,

बेकार की सरकार भगैया !

कॉमनवैल्थ के वैल्थख्बैया ,

बेकार की सरकार भगैया !

पूरे देश को खा गए भैया ,

बेकार की सरकार भगैया !

लश्कर-नक्सल की बलैया,

बेकार की सरकार भगैया !

Saturday, August 14, 2010

पन्द्रह अगस्त दो हज़ार दस!



आज़ादी मिल गई हमको,
चलो सडको पे थूकें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो ट्रैनों को फ़ूकें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो लोगों को कुचलें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो पत्थर उछालें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो घर को जला लें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो घोटले कर लें!

आज़ादी मिल गई हमको,
तिज़ोरी नोटों से भर लें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो पेडों को काटें!

आज़ादी मिल गई हमको,
चलो भूखों को डांटें!


आज़ादी मिल गई हमको,
चलो सूबों को बांटें!

गर भर गया दिल जश्न से तो चलो,
इतना कर लो,
शहीदों की याद में सजदा कर लो!

न कभी वो करना जो,
आज़ादी को शर्मसार करे,
खुद का सर झुके और
शहीदों की कुर्बानी को बेकार करे!

Thursday, August 12, 2010

ग़ज़ल : प्रतिबन्ध लगाना चाहिए

ग़ज़ल
जो लोग हैं पानी में पहले से ही भीगे हुए,
उन्हें मौसमी बरसात से नहीं डरना चाहिए !
अगर हम हो जाएँ बिलकुल ही मुफ्त तो ,
तो आपको क्यों खरीदा जाना चाहिए !
जो ज्यादाद कर दी गयी ज़माने के नाम ,
उस पर क्यों कर आयकर लगाना चाहिए !
संस्थाएं जो हुक्मरानों का भरम रखेंगी ,
उन पर कड़ा प्रतिबन्ध लगाना चाहिए !

Monday, August 2, 2010

मोबाइल का सच

जब हम मोबाइल पे
बात करते हैं तो हँसते- खिलखिलाते हैं ,
पर जब -
होते हैं आमने सामने तो
सिर्फ हेलो कह कर गुजर जाते हैं !
अजीब जमाना है .......

पिता ने फ़ोन किया कि तबियत ठीक नहीं
अलग शहर में रह रहे लड़के ने पूंछा-
अरे क्या हुआ पापा !
ध्यान रखा कीजिये
मैं तुरंत पंहुच जाऊंगा
बस मुझे बता भर देना ।
असहाय और बीमार बाप ने
मन ही मन सोचा -
और कैसे बताऊंगा !
अजीब ज़माना है ..........

मोबाइल पर पति /पत्नी ने कहा
मैं आप को मिस कर रही /रहा हूँ
शाम जब दोनों मिले
तो अलग-अलग करवट सो गए ,
दिन के हवाई प्यार के वादे -
हवा हो गए !
अजीब ज़माना है ............

दोस्त ने दोस्त को कहा -
चिंता मत कर मैं तो हूँ
कोई भी जरूरत हो तो बता देना
दोस्त ने कहा -
शायद कुछ समय में रुपयों कि जरूरत हो
दोस्त ने कहा -चिंता नहीं
फिर जब दोस्त ने मोबाइल किया
तो उसे अजीब सा खौफ था ,
क्यूंकि दोस्त का मोबाइल ऑफ़ था !
अजीब ज़माना है.........

तो दोस्तों -क्या जरूरत है दोगले बनने की
जिन्दगी बिना झूंठ के भी चल सकती है
मोबाइल बिना भी सरक सकती है
कृपया दो तरह के सम्बन्ध न बनायें -
एक मोबाइल वाला /एक असली ,
वर्ना मानवीयता की टूट जाएगी
हड्डी -पसली !
अजीब ज़माना है .................



Monday, July 26, 2010

दुल्हन की डोली-सपने:ग़ज़ल

कुछ बातें तो सितारों में भी रही ही होंगी ,

वो बे-वजह ही नहीं सारी रात चमकते हैं !

कुछ बात तो नजारों भी रही रही ही होगी ,

जो कनखियों से प्रियतम को देखते हैं !

कुछ बातें तो कतारों में भी रही ही होंगी ,

जो हम उनके पीछे धीरे से चलते रहते हैं !

कुछ बात तो कहारों में भी होगी ही अजय ,

दुल्हन की डोली-सपने उनके कन्धों रहते हैं

Friday, July 23, 2010

कोई तो महसूस करे ! ग़ज़ल

कोई तो महसूस करे की बारिश क्यों बरसती है ,
ये हमारे लिये नहीं चिड़ियों के लिए बरसती है !

हमने -आपने बरसात न आने के इंतजाम किये ,
फिर भी बारिश गूंगे और प्यासों के लिए बरसती है !

इतने तल्ख़ भी न बनें कि हमें आंसू भी न आयें ,
आँखें भी ख़ुशी -गम के लिए आंसू को तरसती हैं !

अजय कई लोग सिर्फ इसलिए जुदा हुए दुनियां से ,
कि कुछ बे-मन थालियाँ उन्हें रोज़ खाना परस्ती हैं !

Saturday, July 17, 2010

ग़ज़ल :छोटे -छोटे सुख तलाशने होंगे -अवश्य देखें

छोटे -छोटे सुख तलाशने होंगे हमें अब ,

क्योंकि ये नैनो टेक्नोलोजी का जमाना है !

कोई देखे तो कम से कम मुस्करा देना ,

मोनालिसा की हंसी तो एक फ़साना है !

मुस्कराहट दर्द की तासीर बदल देती है ,

ये पानी से बर्फ को धीरे से पिघलाना है !

अजय हर कोई आज अकेला है चमन में,

फिर भी जिन्दगी का फलसफा सुहाना है !

Saturday, July 10, 2010

ग़ज़ल :पहले बनें दीवाना

जो भी सवाल उठाते हैं मेरे दीवाने-पन पे ,
वो पहले बनें दीवाना , फिर उठायें सवाल !

गम इस बात का नहीं की लोग हैं बोलते ,
गम इस बात का कि बे-बात मचाते हैं बबाल!

जो एक बार छूटा - ये शरीर तो अजय ,
नापाक इरादों को नहीं बचा पायेगी कोई नाल!

तो अच्छे लोगों को और भी ख्याल रखना होगा ,
वर्ना ख़राब हो जाएगी पूरे के पूरे समाज कि चाल !

Thursday, July 8, 2010

अजनबी

अजनबी होना कई बार अच्छा होता है ,

जब हम एक-दूसरे को अच्छे से जान लेते हैं -

मगर मजबूरिओं में मन मार लेते हैं।

दोस्तों दुबारा कब मिलेगी जिन्दगी -

ये पक्का नहीं

पर कुछ तो होने भर के लिए मान लेते हैं ।

जब तक आप में चाह है , उतनी ही है जिन्दगी

वर्ना जीवन रह जाएगी किसी और की बंदगी.

Tuesday, July 6, 2010

अमूल दूध बनाम गाय का दूध !

अमूल दूध बनाम गाय का दूध !

माँ जब बार - बार पड़ी पीछे-
कि बच्चे दूध पी ले ,
तो बच्चे ने रूठते हुए कुछ प्रश्न पूछे
माँ किसका दूध है !
माँ ने कहा गाय का
तो बच्चा झट से बोला -
अपनी गलती कर कबूल
ये है दूध-अमूल ।

कुश ने मुझे बताया कि
घर में प्रति लीटर पड़ता है रुपये अठारह
तो बीच का नफा निकल कर कैसे पड़े बत्तीस से कम,
दूध मुह्ने बच्चों का निकल जाये चाहें दम !

बीफ के शोकीन पैदा हो रहे हैं हमारे देश में ,
और बच्चे दम तोड़ रहे हैं गोपाल के देश में!

इतना तो कम से कम कर सकते हैं हम
खाने के सामान को पोल्य्थीन में भर कर
उसकी गाँठ न बांधें
और सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों का
भविष्य बचा लें !!!!

क्योंकि पोलीथीन खा कर गाय
घुट -घुट के प्राण छोडती हें
जितनी तकलीफ कसाई
के छुरे से
उन्हें नहीं पहुँचती है !


उससे अधिक हमारी वजह से झेलती है!!

Saturday, July 3, 2010

इससे पहले की बहुत देर हो जाये :अभिव्यक्ति


लश्कर के हमले
अमरनाथ यात्रिओं पे लाठीचार्ज !
जिन्हें मुसलमान भी मानते हैं बाबा - बर्फानी
नहीं कर सकते आदि-अनादि देव पर हमला
क्योंकि वह प्रथम पुरुष थे -
तब नहीं था फिक्रापरस्त लोगों का अमला-जुमला
सो चमक रही है सत्ता-परस्त लोगों की तरफ सीधी टोर्च !!
अमरनाथ यात्रिओं पे लाठीचार्ज !

नक्सली हमले
पुलिस मैं खौफ ,
पर जंगले मैं पल रहा हर बच्चा बे-खौफ !

जरा मतलब निकालो ,
कम से कम सामर्थ्यवानों
मेरे देश को अब तो बचालो !

बहकने का हक सभी को है
यतीम को भी और मद मैं चूर अधिकारिओं को
गोवा - मंत्री को और राठोरों को भी
पर दोनों के प्रति है इतना क्यों भेदभाव ,
अकेले जी डी पी से नहीं चलेगी इस महान सांस्कृतिक
देश की नाव !

जीना तो पड़ेगा ही !:कविता

जीना तो पड़ेगा ही !

उदासी और ख़ुशी की -
एक ही है सबा
दोनों को दिल के बात कहने की मिलती है सजा
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......


सो हंसी/ उदासी,
उदासी /हसी एक ही चीज हैं ,
दोनों का एक ही बीज है!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......

दुनियां हमेशा सच्चे दिल वालों को सजा देती है
चाहें -
हों सतयुग में राजा हरिश्चंद्र
रोहिताश्व के शव -दहन के लिए
पत्नी को आधी साड़ी देनी पड़ी
भीष्म चुप थे पाप का अन्न खा खा कर
मुरलीधर आये जब सतीत्व पे विपदा पड़ी
कन्हैया को दर -दर की ठोकर खानी पड़ी-!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......

हम और आप क्या हैं दोस्तों
साक्षात् शिव को गरल की प्यास
बुझानी पड़ी

मगर जीना तो पड़ेगा ही .......

सो बाहर के लिए दिल को पत्थर बनाना होगा
अपनों को किसी भी तरह बचाना होगा !
क्योंकि -
पत्थर मैं भी जीवन स्पंदित होता है
ये बात सच है !!!!!!!!!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......

समझ , समझने वाले
अच्छों को जिन्दा रहना ही चाहिए !!!!!!!!!!!!!!!!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......

Tuesday, June 29, 2010

ग़ज़ल: फूल से फूल की बात करो

ग़ज़ल
फूल से फूल की बात करो , और खार से खार की ,
सुबह अगर ख़राब करनी हो तो बाँचो अखबार की !
कोई भी किसी को तस्सली देता नहीं अब लगता है ,
छोड़ो अजय किससे बातें करें अब सच्चे प्यार की !
जल्द ही अब शख्स सिर्फ अपना भी न रह पायेगा ,
सपना हो जाएँगी बातें अब एक संयुक्त परिवार की!
संभलो /संभालो ऐ दुनियां को जानने वालो दोस्तों ,
वरना कहानियां ही रह जायेंगी बातें इस संसार की !

ग़ज़ल -मजबूर चीखों का

जब निकाला गया इतिहास मजबूर चीखों का ,

मानवीय संवेदना की भारी कमी पायी गयी !

मछलियाँ भी उस हर हाथ को अब पहचानती हैं,

जिस हाथ मैं परवरिश की कुछ भी कमी पाई गई !

लोग कहते हैं महलों मैं कुछ भी नहीं होता है ,

खंडहरों मैं फिर क्यों मजदूरों की हंसी पाई गयी !

अजय बड़ी ही मुश्किल है अब इस दुनियां में जीना ,

दूध -मुंहे बच्चों में मां के दूध की कमी पायी गयी !

Monday, June 28, 2010

ग़ज़ल;- टूटन का इलाज

दोस्तों जिन्दगी की अदा अजीब होती है ,
वो सबसे मंहंगी और सस्ती चीज होती है !

कई चारगार आये इसे समझने के लिए ,
ये पहेली किसी पहलू से हल नहीं होती है !

दर्द जैसा आपका है सबको भी होता ही है ,
ये तो सोने के बदले बालू की खरीद होती है !

'अजय' क्या करें और क्या न करें को छोड़ो ,
दर्द की तासीर जिन्दगी से बड़ी नहीं होती है !

Friday, June 25, 2010

ज़िन्दगी!

ज़िन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं,
चलो हम अपने शिकवे रहने देते है।

सच और झूंठ का फ़र्क तो फ़िर होगा,
दोस्तों को उनकी बात कहने देते है।

बुज़ुर्गों पे चलो इतना अहसान करें 
बुढापे में उन्हे पुराने घर में रहने देते है।

दर्द में भी खुशी तलाश तो ली थी,
ख्याब मुझको कहां खुश रहने देते है?

Friday, June 18, 2010

जी हाँ ! हम नरम देश हैं !: जरूर ध्यान दें



जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

हम अपनों के प्रति /
मित्रों के प्रति /
गरम हैं -
लेकिन गैरों के लिए एकदम नरम हैं
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

हम अपनों से शूल हैं ,
किन्तु विदेशों में काफी कूल हैं ,
गोरी चमड़ी देख फिसल जाते हैं
माँ-बाप को कहते हैं -
प्रकृति की भूल हैं ।

अपना जान भी दे दे तो
कोई परवाह नहीं
दूसरा रुमाल दे दे
तो बदल दें भेष हैं.
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

ये बनावटी सोच जब तलक होगी अजय
तो याद रहे बाकि दुनियां के लिए
हम सिर्फ -
शुन्य और शेष हैं !
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !:

Friday, June 11, 2010

भोपाल गैस !

भोपाल गैस !!!


मेस्सर्स
- भोपाल गैस
-सिटी गैस
-सी अन जी गैस
-सी बी ऍम गैस
-प्राक्रत्रिक गैस

और जाने कितने नाम मुझे याद आये ,
पर जब बच्चे ने मुझे पूंछा कि -
पापा "भोपाल गैस कांड क्या है !"
तो दिन-दहाड़े की नंगी सच्चाई को
खालिस कंट्रोवर्सी कह कर ही पीछा छुड़ा पाये !

लोग कहते हैं -
*एन्देरसों को मेहमान -नवाजी से छोड़ा
*टेक्नोलोजी पुरानी थी
*सरकारें जानी पहचानी थी
*अल्पसंख्यकों का हित साधती -
मौत को पहले पैसा फिर
नोटों को वोटों मैं बदलने का हुनर जानती थी

पापा मत सुनाओ हमें ये कहानी -
ज़बाब दो !!!!!
बेटा सचमुच ही ये एक कोंत्रोवेरसी है
यही देश की डेमोक्रेसी है

ज्यादा दिमाग खा लगा -
पगला जायेगा
कीटनाशकों से भरा अन्न भी -
खा पायेगा !!

Thursday, June 10, 2010

पेड! "बरगद" का! (www.sachmein.blogspot.com)


आपने बरगद देखा है,कभी!

जी हां, ’बरगद’, 

बरर्गर नहीं,

’ब र ग द’ का पेड!

माफ़ करें,
आजकल शहरों में,
पेड ही नहीं होते,
बरगद की बात कौन जाने,

और ये जानना तो और भी मुश्किल है कि,
बरगद की लकडी इमारती नहीं होती,

माने कि, जब तक वो खडा है,
काम का है,

और जिस दिन गिर गया,
पता नही कहां गायब हो जाता है,

मेरे पिता ने बताया था ये सत्य एक दिन!
जब वो ज़िन्दा थे!

अब सोचता हूं, 

मोहल्ले के बाहर वाली टाल वाले से पूछुंगा कभी,
क्या आप ’बरगद’ की लकडी खरीदते हो?


भला क्यों नहीं?


क्या बरगद की लकडी से ईमारती सामान नहीं बनता?


 पता नहीं क्यों!


Tuesday, June 1, 2010

जो मय तेरे नाम से खिंची न गयी हो : ग़ज़ल


ग़ज़ल

वो मय जो तेरे नाम से खींची न गयी हो ,

उस शराबे जाम का मुझे कोई काम नहीं है !

सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,

जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !!

मेरे लिए उस कायनात का मतलब नहीं ,

जो अमानत तुझसे कम दाम की नहीं है !

अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,

उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है !





Sunday, May 16, 2010

फिर करें शुरू !

कि फिर करें शुरू ,
आप चाहें जितने हों बड़े -
या फिर कहीं भी हों खड़े !


जिन्दगी न किसीके मनमुताबिक चली है
न रुकी है !
अपनी रफ़्तार से चलते -२
कुछ पल आपके साथ भी
चली है !!


काहे कि आपाधापी
क्योंकर भागमभाग
लाओ विश्रांत विचार -
हर लम्हे के साथ करो प्यार
न कोई मिले तो कुदरत के साथ ही -
बाँट लो खुद को
और सीखो धीरे -२ बढ़ने का सलीका ,
अपना लो सूखने के बाद भी
हरियाने का तरीका !
आखिर क्यों चाहिए एक अलग पहचान
कई दरख़्त वीराने में ही उगते हैं
अपनी पूरी यात्रा तय करने के उपरांत ,
हो जाते हैं शांत !
यह भी सच है की जीवन दायिनी जड़ी बूटी
उन्ही वृक्षों में ही होती है
जहाँ होता है एकांत !


Monday, May 3, 2010

पदम् पुरुस्कार

ग़ज़ल

काली करतूतें "उनकी" भविष्य में कोई भी तंत्र न पकड़ सके ,
मौजूदा व्यवस्था ने "उनको" पदम् पुरुस्कार प्रदान कर दिया !

लाखों मुकदमों की बेचारिगी से सरावोर न्यायाधीश के सामने ,
कुछ काले कोट वालों ने असली दुराचार को अप्रमाण कर दिया!

मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं अजय आज के भूख-ज़दा माहौल में ,
कितनी सफाई से जिन्दा-आदमी को निर्विकार जान कर दिया!

मुफलिसी खुदा की नियामत है, फटे-हाल रहना एक इबादत है ,
इन फलसफों ने इंसानियत को तार-तार कर विज्ञान कर दिया !

Monday, April 26, 2010

बन रहा क्रांति योग ...क्रमशः -एक अपील शिद्दत से पदने वालों के लिए

बन रहा क्रांति योग ...क्रमशः
मीडिया ने
पुरजोर शब्दों में बताया कि -
एक काबीना मंत्री जब
बी सी सी आई /आई पी अल
की ताबड़-तोड़ फाइव स्टार मीटिंगें
बेनागा कर रहे थे ,
तभी
कोई सौ से ज्यादा किसान हाड़-तोड़
मेहनत करने के बावजूद
उनही के इलाके में आत्महत्या कर रहे थे !
पर ये मीडिया ने तब बताया
जब अपने हिस्से के लाखों विज्ञापन
आई पी अल के कोटे से वे डकार चुके थे,
और अब चूंकि तमाशा ख़तम होने की तरफ है तो
कफ़न में से अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं
सो दिखा रहे हैं कई बार ब्रेअकिंग न्यूज़
बना कर ये बासी खबर
जिसे पहले सिरे से इनकार चुके थे !!
सो सुधरो अब और न बनाओ मौत को मुनाफे
का संयोग ,
क्योंकि देश में बन रहा है जन क्रांति योग !!!!

Friday, April 23, 2010

बन रहा जन-क्रांति योग ! अवश्य पढ़ें

बन रहा जन-क्रांति योग !
हर चीज अपने मूल स्वरुप से,
भटकती प्रतीत होती है।

टी-२० के बहाने जुटाया गया
ढेर सा काला पैसा ,
देखो-क्रिकेट बेचारी रोती है।
जिनके कंधे है -
गरीबों को अनाज मुहैया
कराने की जिम्मवारी।
उनकी भी है गरीबों का निबाला
छीनने वाले गिरोह में-
अच्छी-खासी हिस्सेदारी।
तो संभल जाओ छीनने वालों -
भूखे - नंगे के हिस्से का भी
महज़ सूखी रोटी -नमक-प्याज़ का भोग
अब बन रहा है जन क्रांति का योग !!!

बन रहा जन-क्रांति योग ! अवश्य पड़ें

Saturday, April 3, 2010

ग़ज़ल :टी-२० के बल्ले में

खौफजदा हैं अब बच्चे भी बेख़ौफ़ मकां के दो-तल्ले में ,
कुछ वर्दी वाले जब से आये रहने घर के निचले तल्ले में!

फांसी-फंदे का इन्साफ मिला अब सबसे सच्चे
इन्सां को ,
काजी का इमां भी डोला दुनियां के फर्जी हल्ले -गुल्ले में!


काश्तकार कर
रहे ख़ुदकुशी नित -नयी तकनीकी के दौर में,
वज़ीरे -फसल सर तक फंसे हुए हैं, देखो टी -२० के बल्ले में !

क्या हो रहा ये सब अजय आज के इस दम -घोंटू माहौल में ,
माँ
रखती है जहर की पुडिया अब तो अक्सर अपने पल्ले में !!

Sunday, March 28, 2010

ब्लौगर की कहानी -एक कविता

ब्लौगर की कहानी -एक कविता

ब्लौगर की कहानी का सच
मैंने अब अब कुछ कुछ
पहचाना है!

जिन्हें जानता भी नहीं
सीने से उन्हें लगाता है ,
पीड़ा पर उनकी आंसू बहुत बहाता है
लिखना तो एक बहाना है ,
मैंने अब कुछ कुछ पहचाना है ........

कभी तो वो भी होगा -
लोगों की तरह सामने आने वाला
कवि मन उसका भी
चाहत मैं होगा तडपा
इज़हार किया होगा उसने भी
मन माफिक पाने का
किन्तु , अंतर्मन उसका बेगाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............

तो ,एसे सच्चे लोगों को
अपने जैसों का ही बचा एक सहारा है ,
सारे ऐसे ही अच्छे भावों को
हम सबको ही मिलाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............
क्रमशः ........
कहाँ शुरू करू और कहाँ करू अंत
ब्लॉगर मैं भी संभावनाएं अनंत
आइये मिलन की ये परिपाटी बनायें
नेपथ्य मैं रहना तो खुद से खुद को झुटलाना है
लिखना तो एक बहाना है ..........




Wednesday, March 24, 2010

राम नवमी -एक गीत

राम नवमी -एक गीत

सोचा एक गीत लिखूं -
राम नवमी के नाम
और भूल से सही ,कर सकूं
राम से कुछ काम !~

कुछ अधूरे भी रहे होंगे
राम तेरे कुछ काम
जैसे रावन का खात्मा हर
युग मैं करने का संकल्प
शोषित कुचलों वनवासियों को
गले लगाने का अनवरत प्रकल्प
जन जन में हो राम का नाम
कर सकूं राम से कुछ काम .....

मर्यादा के कुछ तो पन्ने
अपने जीवन में उतारूं
कम से कम आश्रित को तो
मौत के घाट न उतारूं
बच्चों को पिलाने वाले दूध में
जहर न मिलाऊँ
अर्थी के तो न लूं दाम
कर सकूं राम के कुछ काम .........

राम नाम जपने का मन्त्र
जिसने परोपकार के लिए दिया
कुछ तो व वापस कर जाऊं
उरिण हो कर कुछ तो मानव कहलाऊँ
शांत भाव से जिससे कटे
जीवन की ये शाम
कर सकूं राम के कुछ काम ......





Sunday, March 14, 2010

लिखे को समझने वाले ...एक ग़ज़ल

ग़ज़ल
दो-पहर , धुप से बचोगे तो शाम का कुदरती लुत्फ़ कैसे उठा पाओगे ,
हर मुश्किल लम्हा हंस के जियो वर्ना यूँ ता-उम्र कैसे जी पाओगे !!
लिखना है तो फकत अपने /अपनों के लिए ही लिखा करो "अजय " ,
तुझे , तेरे लिखे से कोई समझ सके - ऐसे पढने वाले कहाँ से लाओगे!!
शहर की आपाधापी और थकन किसी भी नशे से नहीं उतरने वाली ,
सुकून तभी मिलेगा दोस्त जब बिना काम भी लोगों के घर जाओगे !!
हमारे पास यूँ तो खालिस अपना कहने को कुछ भी नहीं है यारब ,
फिर भी मिलने जब भी आये ,तरोताजा दोस्ती की महक ले जाओगे !!

Thursday, March 11, 2010

क्या - क्या कितना बदला :प्रत्येक संवेदन-सर्जन शील के लिए

ग़ज़ल
थम गए अब अभ्यारण्यों में भी पाखी के उन्मुक्त पाख*,
चिपकाने का तासीरी हुनर भी अब भूल चली है लाख **!
यूं कुछ इस तरह इन्सान फंसा दुनियावी मकडजाल में ,
न माया संभाल सका और न ही बची रह सकी साख !
बदल रहे हैं तेजी से सौन्दर्य के कई काल-जई प्रतिमान,
फूल खुशबू चन्दन और पानी के नए पर्याय बने हैं आख !***
"अजय " मेरी तड़प कुछ इस तरह से हो सकती है बयां,
धधक रही है लकड़ी , न कोयला बनी न रह सकी राख !!
*पंख *** गोंद सरीखा पदार्थ ***