Sunday, March 28, 2010

ब्लौगर की कहानी -एक कविता

ब्लौगर की कहानी -एक कविता

ब्लौगर की कहानी का सच
मैंने अब अब कुछ कुछ
पहचाना है!

जिन्हें जानता भी नहीं
सीने से उन्हें लगाता है ,
पीड़ा पर उनकी आंसू बहुत बहाता है
लिखना तो एक बहाना है ,
मैंने अब कुछ कुछ पहचाना है ........

कभी तो वो भी होगा -
लोगों की तरह सामने आने वाला
कवि मन उसका भी
चाहत मैं होगा तडपा
इज़हार किया होगा उसने भी
मन माफिक पाने का
किन्तु , अंतर्मन उसका बेगाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............

तो ,एसे सच्चे लोगों को
अपने जैसों का ही बचा एक सहारा है ,
सारे ऐसे ही अच्छे भावों को
हम सबको ही मिलाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............
क्रमशः ........
कहाँ शुरू करू और कहाँ करू अंत
ब्लॉगर मैं भी संभावनाएं अनंत
आइये मिलन की ये परिपाटी बनायें
नेपथ्य मैं रहना तो खुद से खुद को झुटलाना है
लिखना तो एक बहाना है ..........




Wednesday, March 24, 2010

राम नवमी -एक गीत

राम नवमी -एक गीत

सोचा एक गीत लिखूं -
राम नवमी के नाम
और भूल से सही ,कर सकूं
राम से कुछ काम !~

कुछ अधूरे भी रहे होंगे
राम तेरे कुछ काम
जैसे रावन का खात्मा हर
युग मैं करने का संकल्प
शोषित कुचलों वनवासियों को
गले लगाने का अनवरत प्रकल्प
जन जन में हो राम का नाम
कर सकूं राम से कुछ काम .....

मर्यादा के कुछ तो पन्ने
अपने जीवन में उतारूं
कम से कम आश्रित को तो
मौत के घाट न उतारूं
बच्चों को पिलाने वाले दूध में
जहर न मिलाऊँ
अर्थी के तो न लूं दाम
कर सकूं राम के कुछ काम .........

राम नाम जपने का मन्त्र
जिसने परोपकार के लिए दिया
कुछ तो व वापस कर जाऊं
उरिण हो कर कुछ तो मानव कहलाऊँ
शांत भाव से जिससे कटे
जीवन की ये शाम
कर सकूं राम के कुछ काम ......





Sunday, March 14, 2010

लिखे को समझने वाले ...एक ग़ज़ल

ग़ज़ल
दो-पहर , धुप से बचोगे तो शाम का कुदरती लुत्फ़ कैसे उठा पाओगे ,
हर मुश्किल लम्हा हंस के जियो वर्ना यूँ ता-उम्र कैसे जी पाओगे !!
लिखना है तो फकत अपने /अपनों के लिए ही लिखा करो "अजय " ,
तुझे , तेरे लिखे से कोई समझ सके - ऐसे पढने वाले कहाँ से लाओगे!!
शहर की आपाधापी और थकन किसी भी नशे से नहीं उतरने वाली ,
सुकून तभी मिलेगा दोस्त जब बिना काम भी लोगों के घर जाओगे !!
हमारे पास यूँ तो खालिस अपना कहने को कुछ भी नहीं है यारब ,
फिर भी मिलने जब भी आये ,तरोताजा दोस्ती की महक ले जाओगे !!

Thursday, March 11, 2010

क्या - क्या कितना बदला :प्रत्येक संवेदन-सर्जन शील के लिए

ग़ज़ल
थम गए अब अभ्यारण्यों में भी पाखी के उन्मुक्त पाख*,
चिपकाने का तासीरी हुनर भी अब भूल चली है लाख **!
यूं कुछ इस तरह इन्सान फंसा दुनियावी मकडजाल में ,
न माया संभाल सका और न ही बची रह सकी साख !
बदल रहे हैं तेजी से सौन्दर्य के कई काल-जई प्रतिमान,
फूल खुशबू चन्दन और पानी के नए पर्याय बने हैं आख !***
"अजय " मेरी तड़प कुछ इस तरह से हो सकती है बयां,
धधक रही है लकड़ी , न कोयला बनी न रह सकी राख !!
*पंख *** गोंद सरीखा पदार्थ ***

Tuesday, March 9, 2010

परीक्षा का मौसम -एक ग़ज़ल

परीक्षा का मौसम -एक ग़ज़ल

परीक्षा का मौसम है , बच्चे हैं हर तरह की बेहतरीन तय्यारिओं में ,
हम बड़े मशगूलहैं अय्यारिओं मैं ,फेल हो रहे इंसानियत के पर्चे में !!

बच्चे पास हो कर पोधों की मानिंद रोपे जायेंगे संसार की क्यारिओं में
चिंता मत कर निश्चित अब्वल हम भी आयेंगे हेवानियत के चर्चे में !!

जब थे बच्चे और समझ हमारी काफी कम थी दीन-दुनियां में अजय ,
चोकलेट के हिसाब से निकाल, दुअन्नी भी देते थे आदमियत के खर्चे में !!

कौन फेल हुआ और कौन पास जीवन के इस लम्बे झमेले में ए दोस्त ,
तमाम सयाना-पन तेरा हवा हो जायेगा जहन्नुम के जर्रे -जर्रे में !!!




Monday, March 8, 2010

ग़ज़ल : ईंटों की तरह आग में पकाए जायेंगे .....

ग़ज़ल
जज्बात जख्म और दर्द के अपने आंसू अपने पास ही रखो ,
वर्ना दूसरे तेरे आंसुओं में अपने व्यापार की नाव चलाएंगे !
इंसानियत के मकाँ की ता -उम्र हिफाज़त के लिए दोस्त ,
ये समझ कि शब्द भी ईंटों की मानिंद आग में पकाए जायेंगे !!
अब झुग्गियों में रहने वालों पे भी बिना देखे इनायत न कर ,
ज्यादा दाम मिलते ही ये तेरे क्या मुल्क के भी नहीं रह पाएंगे !
हम किसी मुफ़लिस के गरीबखाने हों या महमान शहंशाह के ,
"अजय "ज़माने के ये हालात तुछे कभी भी नहीं बदल पाएंगे!