Sunday, May 16, 2010

फिर करें शुरू !

कि फिर करें शुरू ,
आप चाहें जितने हों बड़े -
या फिर कहीं भी हों खड़े !


जिन्दगी न किसीके मनमुताबिक चली है
न रुकी है !
अपनी रफ़्तार से चलते -२
कुछ पल आपके साथ भी
चली है !!


काहे कि आपाधापी
क्योंकर भागमभाग
लाओ विश्रांत विचार -
हर लम्हे के साथ करो प्यार
न कोई मिले तो कुदरत के साथ ही -
बाँट लो खुद को
और सीखो धीरे -२ बढ़ने का सलीका ,
अपना लो सूखने के बाद भी
हरियाने का तरीका !
आखिर क्यों चाहिए एक अलग पहचान
कई दरख़्त वीराने में ही उगते हैं
अपनी पूरी यात्रा तय करने के उपरांत ,
हो जाते हैं शांत !
यह भी सच है की जीवन दायिनी जड़ी बूटी
उन्ही वृक्षों में ही होती है
जहाँ होता है एकांत !


Monday, May 3, 2010

पदम् पुरुस्कार

ग़ज़ल

काली करतूतें "उनकी" भविष्य में कोई भी तंत्र न पकड़ सके ,
मौजूदा व्यवस्था ने "उनको" पदम् पुरुस्कार प्रदान कर दिया !

लाखों मुकदमों की बेचारिगी से सरावोर न्यायाधीश के सामने ,
कुछ काले कोट वालों ने असली दुराचार को अप्रमाण कर दिया!

मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं अजय आज के भूख-ज़दा माहौल में ,
कितनी सफाई से जिन्दा-आदमी को निर्विकार जान कर दिया!

मुफलिसी खुदा की नियामत है, फटे-हाल रहना एक इबादत है ,
इन फलसफों ने इंसानियत को तार-तार कर विज्ञान कर दिया !