Tuesday, June 29, 2010

ग़ज़ल: फूल से फूल की बात करो

ग़ज़ल
फूल से फूल की बात करो , और खार से खार की ,
सुबह अगर ख़राब करनी हो तो बाँचो अखबार की !
कोई भी किसी को तस्सली देता नहीं अब लगता है ,
छोड़ो अजय किससे बातें करें अब सच्चे प्यार की !
जल्द ही अब शख्स सिर्फ अपना भी न रह पायेगा ,
सपना हो जाएँगी बातें अब एक संयुक्त परिवार की!
संभलो /संभालो ऐ दुनियां को जानने वालो दोस्तों ,
वरना कहानियां ही रह जायेंगी बातें इस संसार की !

ग़ज़ल -मजबूर चीखों का

जब निकाला गया इतिहास मजबूर चीखों का ,

मानवीय संवेदना की भारी कमी पायी गयी !

मछलियाँ भी उस हर हाथ को अब पहचानती हैं,

जिस हाथ मैं परवरिश की कुछ भी कमी पाई गई !

लोग कहते हैं महलों मैं कुछ भी नहीं होता है ,

खंडहरों मैं फिर क्यों मजदूरों की हंसी पाई गयी !

अजय बड़ी ही मुश्किल है अब इस दुनियां में जीना ,

दूध -मुंहे बच्चों में मां के दूध की कमी पायी गयी !

Monday, June 28, 2010

ग़ज़ल;- टूटन का इलाज

दोस्तों जिन्दगी की अदा अजीब होती है ,
वो सबसे मंहंगी और सस्ती चीज होती है !

कई चारगार आये इसे समझने के लिए ,
ये पहेली किसी पहलू से हल नहीं होती है !

दर्द जैसा आपका है सबको भी होता ही है ,
ये तो सोने के बदले बालू की खरीद होती है !

'अजय' क्या करें और क्या न करें को छोड़ो ,
दर्द की तासीर जिन्दगी से बड़ी नहीं होती है !

Friday, June 25, 2010

ज़िन्दगी!

ज़िन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं,
चलो हम अपने शिकवे रहने देते है।

सच और झूंठ का फ़र्क तो फ़िर होगा,
दोस्तों को उनकी बात कहने देते है।

बुज़ुर्गों पे चलो इतना अहसान करें 
बुढापे में उन्हे पुराने घर में रहने देते है।

दर्द में भी खुशी तलाश तो ली थी,
ख्याब मुझको कहां खुश रहने देते है?

Friday, June 18, 2010

जी हाँ ! हम नरम देश हैं !: जरूर ध्यान दें



जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

हम अपनों के प्रति /
मित्रों के प्रति /
गरम हैं -
लेकिन गैरों के लिए एकदम नरम हैं
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

हम अपनों से शूल हैं ,
किन्तु विदेशों में काफी कूल हैं ,
गोरी चमड़ी देख फिसल जाते हैं
माँ-बाप को कहते हैं -
प्रकृति की भूल हैं ।

अपना जान भी दे दे तो
कोई परवाह नहीं
दूसरा रुमाल दे दे
तो बदल दें भेष हैं.
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !

ये बनावटी सोच जब तलक होगी अजय
तो याद रहे बाकि दुनियां के लिए
हम सिर्फ -
शुन्य और शेष हैं !
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !:

Friday, June 11, 2010

भोपाल गैस !

भोपाल गैस !!!


मेस्सर्स
- भोपाल गैस
-सिटी गैस
-सी अन जी गैस
-सी बी ऍम गैस
-प्राक्रत्रिक गैस

और जाने कितने नाम मुझे याद आये ,
पर जब बच्चे ने मुझे पूंछा कि -
पापा "भोपाल गैस कांड क्या है !"
तो दिन-दहाड़े की नंगी सच्चाई को
खालिस कंट्रोवर्सी कह कर ही पीछा छुड़ा पाये !

लोग कहते हैं -
*एन्देरसों को मेहमान -नवाजी से छोड़ा
*टेक्नोलोजी पुरानी थी
*सरकारें जानी पहचानी थी
*अल्पसंख्यकों का हित साधती -
मौत को पहले पैसा फिर
नोटों को वोटों मैं बदलने का हुनर जानती थी

पापा मत सुनाओ हमें ये कहानी -
ज़बाब दो !!!!!
बेटा सचमुच ही ये एक कोंत्रोवेरसी है
यही देश की डेमोक्रेसी है

ज्यादा दिमाग खा लगा -
पगला जायेगा
कीटनाशकों से भरा अन्न भी -
खा पायेगा !!

Thursday, June 10, 2010

पेड! "बरगद" का! (www.sachmein.blogspot.com)


आपने बरगद देखा है,कभी!

जी हां, ’बरगद’, 

बरर्गर नहीं,

’ब र ग द’ का पेड!

माफ़ करें,
आजकल शहरों में,
पेड ही नहीं होते,
बरगद की बात कौन जाने,

और ये जानना तो और भी मुश्किल है कि,
बरगद की लकडी इमारती नहीं होती,

माने कि, जब तक वो खडा है,
काम का है,

और जिस दिन गिर गया,
पता नही कहां गायब हो जाता है,

मेरे पिता ने बताया था ये सत्य एक दिन!
जब वो ज़िन्दा थे!

अब सोचता हूं, 

मोहल्ले के बाहर वाली टाल वाले से पूछुंगा कभी,
क्या आप ’बरगद’ की लकडी खरीदते हो?


भला क्यों नहीं?


क्या बरगद की लकडी से ईमारती सामान नहीं बनता?


 पता नहीं क्यों!


Tuesday, June 1, 2010

जो मय तेरे नाम से खिंची न गयी हो : ग़ज़ल


ग़ज़ल

वो मय जो तेरे नाम से खींची न गयी हो ,

उस शराबे जाम का मुझे कोई काम नहीं है !

सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,

जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !!

मेरे लिए उस कायनात का मतलब नहीं ,

जो अमानत तुझसे कम दाम की नहीं है !

अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,

उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है !