Friday, June 25, 2010

ज़िन्दगी!

ज़िन्दगी को उसकी कहानी कहने देते हैं,
चलो हम अपने शिकवे रहने देते है।

सच और झूंठ का फ़र्क तो फ़िर होगा,
दोस्तों को उनकी बात कहने देते है।

बुज़ुर्गों पे चलो इतना अहसान करें 
बुढापे में उन्हे पुराने घर में रहने देते है।

दर्द में भी खुशी तलाश तो ली थी,
ख्याब मुझको कहां खुश रहने देते है?

1 comment:

Unknown said...

बुज़ुर्गों पे चलो इतना अहसान करें
बुढापे में उन्हे पुराने घर में रहने देते है।

बहुत श्रेष्ठ पक्तियां आपकी

विकास पाण्डेय
www.vicharokadarpan.blogspot.com