हम मैं से ज्यादातर
एक-दो या हद से हद तीन कमरों के फ्लैट
में रहते हैं -
हम मकान में नहीं , मकान के भ्रम
में रहते हैं !
किसी ग़लतफ़हमी का शिकार न हों
तो हम में से अधिकतम
शाम घर वापसी पर रीते हो जाते हैं
उम्र से पहले ही बीते
हो जाते हैं !
हम जबरन समझौता कर
पति / पत्नी ,एक-दो अदद बच्चों
के साथ रहते हैं ,
किन्तु वस्तुतः हम अकेले होते हैं !
रविवार की छुट्टी में -
घर का काम निबटते हैं
बचे समय में पैसों को दो का चार
करने की जुगत में लग जाते हैं !
सच में हम कभी जीते ही नहीं हैं /
जीते है लगते हैं ,
हमारे आराम बैंक - किश्तों पे पलते हैं !
मित्रों तो क्या करें -
वक्त के इस मिजाज़ न घबराएँ
इस वक्त को मानस में न स्थाई रूप से सजाएँ
और चुपके से अपने बन जाएँ !
सुबह जब भी मिले मौका
तो बेमतलब निकल जाएँ
वृक्ष देखें /सुनें कलरव /सन्नाटे के गीत
हरी घास पे घूमें / अपने को थोड़ा -
बहुत ही पायें !
दोस्तों इतना भर काफी है
यह आपकी भीतरी आपाधापी को
कुछ तो कम करेगा ही,
भीतर के घावों को कुछ तो भरेगा ही !
में मानता हूँ कि इस मुश्किल दौर में
हम पत्थर बन चुके हैं
लेकिन अगर हम खुद को थोड़ा बहुत उकेर लें
तो हर पत्थर एक जीती जागती मूर्ति है =
जो हम सच-मुच में हैं !