Sunday, November 11, 2012


मित्रों को समर्पित गीत

दीप- चिन्तन
मैने कर लिया स्वयं को स्वीकार
आज दीपों का चिन्तन यही है I

तमस की जो लड़ाई , मैने खुद से लड़ी है ,
वह यातना वह घुटन पहले किस्सों में ही पढ़ी है
अनवरत प्रयासों के उजाले ही दिखाते द्वार
आज दीपों का मन्थन यही है I

हम रौशनी के ये मांगे बल्ब कब तक जलाएं ,
इस चक्कर में खुद की साथी व्यथाएं ही न छूट जाएँ
क्यों लोगों से करूं मैं रोशनी की मनुहार
आज दीपों का क्रन्दन यही है I

मुश्किलों का धुंधलका अब कुछ कम हुआ है ,
क्रोधित समय का भयाभय भाव भी अब नम हुआ है
फिर क्यों करूं किसी और के सपनों का दीदार
आज दीपों का वन्दन यही है I

मैने कर लिया स्वयं को स्वीकार
आज दीपों का चिन्तन यही है I