Monday, December 31, 2012

नव वर्ष गीत .....

प्रत्येक पल 
जीएं 
नव-वर्ष 
सच मायने तभी होगा
उत्कर्ष
*
क्रंदन में अभिवंदन
वंदन मैं हो
चन्दन
जीवन-संघर्ष बना रहे
फिर भी रहे
हर्ष
*
गीत नए
मीत भी नए
नित नए आयाम
संगीत नए
स्वीकारें
सहर्ष
*
जीयें छोटे -छोटे
सुखद पल
मन हो निर्मल
अच्छे लोग अच्छी
बातें फैलाएं
एक नयी कड़ी बनायें
तभी बनेगी बात
मिटेगी
घोर अंधकार की रात
अंतर्मन से करें
ये
विचार-विमर्ष
-डॉ अजय गुप्त

Friday, December 28, 2012


वह अब नहीं रही .........

सुबह की पहली किरन
 के साथ ही -
बुझ गयी एक नन्ही सी किरन 
मैं गीत अब मानव व्यथाओं के 
क्या लिखूं ?
मम स्पर्शी संवेदनाओं के 
क्या लिखूं ?

क्यों लिखूं कि मानवों को 
दानवों ने छला 
क्यों लिखूं द्रोपदी का चीरहरण 
क्यों लिखूं सीता अपहरण 
इन व्यथाओं  में फिर  भी था 
मानवपन का कुछ तो लेश 
किन्तु दिल्ली की इस दुर्दांतता  
से कुछ नहीं बचा शेष 

दोस्तों ,
शिखंडियों से आशा व्यर्थ है 
भीष्म से न्याय मिलने 
का कोई अर्थ है ?

ये लडाई हमको ही अब लड़नी पड़ेगी,
ये  लडाई हमको ही अब लड़नी पड़ेगी!!!
-डॉ अजय गुप्त 

Tuesday, December 4, 2012

गीत:नया जख्म साथ लाता है ------


सच्चों को इसलिए मिलना चाहिए -
झूठे मिल जाएँ तो सच्चा 
टूट जाता है 
आखिर मज़बूत से मज़बूत लोहा 

भी कभी
टूट जाता है।


पुराने रिश्तों को 
निभाते जरूर रहिये 
हर चमकता नया दोस्त 
नए जख्म भी साथ लाता है।

अपने पुराने दोस्त को 
सीने से लगाकर रखना 
वर्ना आजकल कौन
मुफ्त में दुआएं 
दे-कर जाता है।

अजय मुश्किल है कि किसको
सच्चा कहें ,अपना कहें या पराया
पहचान है कि कौन नहीं
बदलता और कौन
बदल जाता है।
डॉ अजय गुप्ता