संक्रांति -गीत
बचे !
अच्छा लिखने /बोलने /पढ़ने वाले
समझने वाले ,
समझाने वाले .
अनुदित विषयों पर पोथी भर-भर
लिखने वालों की बाज़ार में
खूब लग रही हैं -बोलियाँ !
मौलिक रचना कर्मियों के जरा
कम सजे पन्नों की
जल रही हैं -होलियाँ !
ठोकर खा पहले से गिरे हुए को
मिटाना और गिराना
मर्दानगी का दंभ मन जा रहा है
झोपड़ियाँ गिराना और फिर
उन पर महल सजाने वालों को
लोकतंत्र में -
स्तम्भ माना जा रहा है .
दोस्तों - एक निहायत मतलब परस्त
भ्रान्ति हो रही है
इसकी दिशा बदलाव के लिए
संक्रांति जरूरी हो रही है .
क्योंकि -
अब गिनती के ही हैं -
बचे !
अच्छा लिखने /बोलने /पढ़ने वाले
समझने वाले ,
समझाने वाले .
-डॉ अजय गुप्त