ग़ज़ल
फूलबाड़ी से चुनकर तो कई लोग फूल गुलदस्तों मैं सजाते हैं ,
ये हमारा निहायत अपना फन है हम फैंके हुओं से ढूँढ लाते हैं I
किताबें तमाम पढ़ कर तो लोग अक्सर अक्लमंद हो जाते हैं ,
हम रददी अख़बारों की कतरनों से फलसफा ए जिंदगी बताते हैंI
हमारे हुनर पर न जाओ मुझसे खामखाँ, ओ होड़ लगाने वालों ,
जीतने का इल्म-ए -हुनर रखते हैं और जीती बाजीयां हार जाते हैंI
हमसे तकरार न करो तो ही अच्छा है हम सबके लिए ओ! रकीब ,
छोडने पे आ जाएँ तो दौलत क्या हुस्न क्या जमाना छोड़ जाते हैं I
-डॉ अजय गुप्त