कभी-कभी अंतिम यात्रा, वात्सल्य से जीवन के अंतिम सेतु तक जाती है : कभी किशोरावस्था से अंत की ओर कभी युवावस्था और कभी vradhavasta से , किन्तु लक्ष्य स्थिर है , और वो है :--जीवन के उस उद्देश्य को पहचानना जो हमें चिरंजीवी बनता है । आप कितना सफल हुए इसका सिर्फ एक ही पैमाना है की आपकी म्रत्यु के बाद कोई आपका शोक न करे बल्कि यह सोचे की आप तरोताजा हो कर आयें और फिर भटकों को रास्ता दिखाएँ.
2 comments:
अभिलाषायें,अनन्त हैं,एक नया रूप प्रस्तुत किया आपने, मरने के बाद की अभिलाषा, विचार मौलिक है,बधाई!
aap jeevan ke katu satya ko lalkaar rahe hai. yadi safalta ko aise maapenge to kisi ka bhi jeevan kabhi safal ho hi nahi sakta. phir moksha ki paribhasha badalni hogi. phir bhi vichaar manthan ko badhai.
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