ग़ज़ल
फूल से फूल की बात करो , और खार से खार की ,
सुबह अगर ख़राब करनी हो तो बाँचो अखबार की !
कोई भी किसी को तस्सली देता नहीं अब लगता है ,
छोड़ो अजय किससे बातें करें अब सच्चे प्यार की !
जल्द ही अब शख्स सिर्फ अपना भी न रह पायेगा ,
सपना हो जाएँगी बातें अब एक संयुक्त परिवार की!
संभलो /संभालो ऐ दुनियां को जानने वालो दोस्तों ,
वरना कहानियां ही रह जायेंगी बातें इस संसार की !
2 comments:
बहुत बेहतरीन!
सटीक शब्दों में सुन्दर भाव!वाह!
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