Monday, April 29, 2013

बड़ी मुश्किल है :ग़ज़ल 


कुछ तो बात है जिसको इस आवाम से छुपाया गया ,
वर्ना क्यों इस देश को सोने से यूँ मिटटी बनाया गया!
तमाम तारीखें बयां करती हैं रौशनी का सफ़र सचमुच,
रौशनी को क्यों अपनों से खुलेआम ऐसे छुपाया गया!
यह घुटाले ,ये हंगामे और ये गरीब के आंसू और क्या ,
आज़ादी - कीमत पर इसे मुल्क से क्यों छुपाया गया!
हम इतना भर कर लेते हैं कबीर ,सांस लेने के लिए कि
अपने ही हैं गिरेबा में देखें गे कुछ तो याद आया होगा ! 

डॉ अजय कबीर

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