बेहेतरीन
यादगारें
न तू खुदा है , न मेरा इश्क फरिश्तों जैसा !
दोनों जब इंसान हैं तो क्यों इतने हिजाबों मैं मिलें !!
मजबूर थे ले आए किनारे पे अपना सफीना !
दरिया जो मिले हमको -पायाब* बहुत थे !!
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल !
हार जाने का पूरा होंसला है मुझे !!
हमसफ़र चाहिए मुझे कोई हुजूम नहीं !
एक मुसाफिर भी पूरा काफिला है मुझे!!
रुके तो गर्दिशें भी उसका तबाफ ** करती हैं !
चले तो हमको ज़माने ठहर के देखते हैं !!
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी !
लोग क्यों वहां जश्न मानाने आए !!
सुना है लोग उनको आँखें भर के देखते हैं !
सो उनके शहर मैं कुछ दिन रुक के देखते हैं !!
सुना है बोलते हैं, तो फूल झरते हैं !
ये बात तो चलो उनसे बात कर देखते हैं !!
* daldal
**parikrama
1 comment:
Ahmad faraz ki ek ghazal jise Ghulam Ali ne gayee hai yaad agayee.
Zindagi se yehi gila hai mujhe
Tu bahut se der se mila hai mujhe
dil dhadkata nahin sulagta hai
wo jo khwahish thi abla hai mujhe
lab kusha hoon to is yaqeen ke saath
qatl hone hai ka husla hai mujhe
kaun jaane ke chahaton mein Faraz
Kya gavanya hai kya mila hai mujhe
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