ग़ज़ल
जज्बात जख्म और दर्द के अपने आंसू अपने पास ही रखो ,
वर्ना दूसरे तेरे आंसुओं में अपने व्यापार की नाव चलाएंगे !
इंसानियत के मकाँ की ता -उम्र हिफाज़त के लिए दोस्त ,
ये समझ कि शब्द भी ईंटों की मानिंद आग में पकाए जायेंगे !!
अब झुग्गियों में रहने वालों पे भी बिना देखे इनायत न कर ,
ज्यादा दाम मिलते ही ये तेरे क्या मुल्क के भी नहीं रह पाएंगे !
हम किसी मुफ़लिस के गरीबखाने हों या महमान शहंशाह के ,
"अजय "ज़माने के ये हालात तुछे कभी भी नहीं बदल पाएंगे!
2 comments:
वाह, दमदार बात!खूबसूरत अल्फ़ाज़!
वाह, दमदार बात!खूबसूरत अल्फ़ाज़ :):)
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