Saturday, April 7, 2012

ग़ज़ल : अज़ब तजुर्बा

अज़ब तजुर्बा
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ज़िन्दगी का भी अज़ब -अज़ब तजुर्बा है मेरे दोस्त ,
किसी का एक दो बार किसी का कई मर्तबा है दोस्त !
कोई लाखों पाकर भी खालिस ही रह गया दुनियां में,
कोई मुफलिसी में भी ज़न्नत की शहंशाही पा गया मेरे दोस्त !
कोई शाही मज्जिद से भी बिना सजदा किये वापस आया ,
किसीको टूटे घर की चौखट भी काबा कर्बला है मेरे दोस्त !
नमूने हज़ार और नायाब हैंबनने के बाज़ार में हर ओर मौजूद ,
कोई मिट्टी का और कोई सोना बनने का हुनर लाया मेरे दोस्त !

1 comment:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

......................किसी को टूटे घर की चौखट भी काबा कर्बला है मेरे दोस्त !

vaah!क्या बात है वाह!