Sunday, November 7, 2010
लिखो ऐसा जो सबके काम का हो !:ग़ज़ल
लिखो ऐसा जो हो सबके काम का औ कल आज कल का हो ,
यकीन मानिये, ये मेरी और आपकी नियति को तय करेगा!
एक बहुत ही छोटे/चर्चित वर्ग को तो कल या आज जाना ही है,
बड़े वर्ग का अपेक्षित हिस्सा ही हर हाल ही इस प्रलय में बचेगा!
हमने सुना पिछली बार सिर्फ मनु-इडा -श्रद्धा ही बचे थे प्रलय में,
तो सोचना है कि हमारे बड़े वर्ग में से अब कौन -कौन ही बचेगा !
यानि कि हर तरह कि शक्सियत मिट जाएँगी आज के दौर से तो ,
इंसानियत के नुमैंदों को कौन आगे इस कायनात पे सजदा करेगा !
दुनियावी बातें आजकल एक अज़ब शक्ल में सामने आ रही हैं अजय ,
सो लिखो/पड़ो ऐसा जो दोज़ख के बाद इन्सान का रास्ता तय करेगा!
Monday, October 18, 2010
हम सच -मुच हैं !!
हम मैं से ज्यादातर
एक-दो या हद से हद तीन कमरों के फ्लैट
में रहते हैं -
हम मकान में नहीं , मकान के भ्रम
में रहते हैं !
किसी ग़लतफ़हमी का शिकार न हों
तो हम में से अधिकतम
शाम घर वापसी पर रीते हो जाते हैं
उम्र से पहले ही बीते
हो जाते हैं !
हम जबरन समझौता कर
पति / पत्नी ,एक-दो अदद बच्चों
के साथ रहते हैं ,
किन्तु वस्तुतः हम अकेले होते हैं !
रविवार की छुट्टी में -
घर का काम निबटते हैं
बचे समय में पैसों को दो का चार
करने की जुगत में लग जाते हैं !
सच में हम कभी जीते ही नहीं हैं /
जीते है लगते हैं ,
हमारे आराम बैंक - किश्तों पे पलते हैं !
मित्रों तो क्या करें -
वक्त के इस मिजाज़ न घबराएँ
इस वक्त को मानस में न स्थाई रूप से सजाएँ
और चुपके से अपने बन जाएँ !
सुबह जब भी मिले मौका
तो बेमतलब निकल जाएँ
वृक्ष देखें /सुनें कलरव /सन्नाटे के गीत
हरी घास पे घूमें / अपने को थोड़ा -
बहुत ही पायें !
दोस्तों इतना भर काफी है
यह आपकी भीतरी आपाधापी को
कुछ तो कम करेगा ही,
भीतर के घावों को कुछ तो भरेगा ही !
में मानता हूँ कि इस मुश्किल दौर में
हम पत्थर बन चुके हैं
लेकिन अगर हम खुद को थोड़ा बहुत उकेर लें
तो हर पत्थर एक जीती जागती मूर्ति है =
जो हम सच-मुच में हैं !
Friday, October 8, 2010
न चिड़ियाँ बचीं न खेत
Monday, September 27, 2010
मुफलिसी (फक्कडपन ) क्या है !
Friday, September 17, 2010
ग़ज़ल : उलट-बांसी
नाईट मैच की रौशनी की तरह यहाँ
Tuesday, September 14, 2010
ग़ज़ल :ता-ता थैया -ता ता थैया / बेकार की सरकार भगैया
ता-ता थैया , ता-ता थैया ,
बेकार की सरकार भगैया !
कश्मीर के लोग हैं भइया,
बेकार की सरकार भगैया!
जाति-गर्णा :जीत-जितैया ,
बेकार की सरकार भगैया !
कॉमनवैल्थ के वैल्थख्बैया ,
बेकार की सरकार भगैया !
पूरे देश को खा गए भैया ,
बेकार की सरकार भगैया !
लश्कर-नक्सल की बलैया,
बेकार की सरकार भगैया !
Saturday, August 14, 2010
पन्द्रह अगस्त दो हज़ार दस!
Thursday, August 12, 2010
ग़ज़ल : प्रतिबन्ध लगाना चाहिए
जो लोग हैं पानी में पहले से ही भीगे हुए,
उन्हें मौसमी बरसात से नहीं डरना चाहिए !
अगर हम हो जाएँ बिलकुल ही मुफ्त तो ,
तो आपको क्यों खरीदा जाना चाहिए !
जो ज्यादाद कर दी गयी ज़माने के नाम ,
उस पर क्यों कर आयकर लगाना चाहिए !
संस्थाएं जो हुक्मरानों का भरम रखेंगी ,
उन पर कड़ा प्रतिबन्ध लगाना चाहिए !
Monday, August 2, 2010
मोबाइल का सच
बात करते हैं तो हँसते- खिलखिलाते हैं ,
पर जब -
होते हैं आमने सामने तो
सिर्फ हेलो कह कर गुजर जाते हैं !
अजीब जमाना है .......
पिता ने फ़ोन किया कि तबियत ठीक नहीं
अलग शहर में रह रहे लड़के ने पूंछा-
अरे क्या हुआ पापा !
ध्यान रखा कीजिये
मैं तुरंत पंहुच जाऊंगा
बस मुझे बता भर देना ।
असहाय और बीमार बाप ने
मन ही मन सोचा -
और कैसे बताऊंगा !
अजीब ज़माना है ..........
मोबाइल पर पति /पत्नी ने कहा
मैं आप को मिस कर रही /रहा हूँ
शाम जब दोनों मिले
तो अलग-अलग करवट सो गए ,
दिन के हवाई प्यार के वादे -
हवा हो गए !
अजीब ज़माना है ............
दोस्त ने दोस्त को कहा -
चिंता मत कर मैं तो हूँ
कोई भी जरूरत हो तो बता देना
दोस्त ने कहा -
शायद कुछ समय में रुपयों कि जरूरत हो
दोस्त ने कहा -चिंता नहीं
फिर जब दोस्त ने मोबाइल किया
तो उसे अजीब सा खौफ था ,
क्यूंकि दोस्त का मोबाइल ऑफ़ था !
अजीब ज़माना है.........
तो दोस्तों -क्या जरूरत है दोगले बनने की
जिन्दगी बिना झूंठ के भी चल सकती है
मोबाइल बिना भी सरक सकती है
कृपया दो तरह के सम्बन्ध न बनायें -
एक मोबाइल वाला /एक असली ,
वर्ना मानवीयता की टूट जाएगी
हड्डी -पसली !
अजीब ज़माना है .................
Monday, July 26, 2010
दुल्हन की डोली-सपने:ग़ज़ल
कुछ बातें तो सितारों में भी रही ही होंगी ,
वो बे-वजह ही नहीं सारी रात चमकते हैं !
कुछ बात तो नजारों भी रही रही ही होगी ,
जो कनखियों से प्रियतम को देखते हैं !
कुछ बातें तो कतारों में भी रही ही होंगी ,
जो हम उनके पीछे धीरे से चलते रहते हैं !
कुछ बात तो कहारों में भी होगी ही अजय ,
दुल्हन की डोली-सपने उनके कन्धों रहते हैं
Friday, July 23, 2010
कोई तो महसूस करे ! ग़ज़ल
ये हमारे लिये नहीं चिड़ियों के लिए बरसती है !
हमने -आपने बरसात न आने के इंतजाम किये ,
फिर भी बारिश गूंगे और प्यासों के लिए बरसती है !
इतने तल्ख़ भी न बनें कि हमें आंसू भी न आयें ,
आँखें भी ख़ुशी -गम के लिए आंसू को तरसती हैं !
अजय कई लोग सिर्फ इसलिए जुदा हुए दुनियां से ,
कि कुछ बे-मन थालियाँ उन्हें रोज़ खाना परस्ती हैं !
Saturday, July 17, 2010
ग़ज़ल :छोटे -छोटे सुख तलाशने होंगे -अवश्य देखें
छोटे -छोटे सुख तलाशने होंगे हमें अब ,
क्योंकि ये नैनो टेक्नोलोजी का जमाना है !
कोई देखे तो कम से कम मुस्करा देना ,
मोनालिसा की हंसी तो एक फ़साना है !
मुस्कराहट दर्द की तासीर बदल देती है ,
ये पानी से बर्फ को धीरे से पिघलाना है !
अजय हर कोई आज अकेला है चमन में,
फिर भी जिन्दगी का फलसफा सुहाना है !
Saturday, July 10, 2010
ग़ज़ल :पहले बनें दीवाना
वो पहले बनें दीवाना , फिर उठायें सवाल !
गम इस बात का नहीं की लोग हैं बोलते ,
गम इस बात का कि बे-बात मचाते हैं बबाल!
जो एक बार छूटा - ये शरीर तो अजय ,
नापाक इरादों को नहीं बचा पायेगी कोई नाल!
तो अच्छे लोगों को और भी ख्याल रखना होगा ,
वर्ना ख़राब हो जाएगी पूरे के पूरे समाज कि चाल !
Thursday, July 8, 2010
अजनबी
अजनबी होना कई बार अच्छा होता है ,
जब हम एक-दूसरे को अच्छे से जान लेते हैं -
मगर मजबूरिओं में मन मार लेते हैं।
दोस्तों दुबारा कब मिलेगी जिन्दगी -
ये पक्का नहीं
पर कुछ तो होने भर के लिए मान लेते हैं ।
जब तक आप में चाह है , उतनी ही है जिन्दगी
वर्ना जीवन रह जाएगी किसी और की बंदगी.
Tuesday, July 6, 2010
अमूल दूध बनाम गाय का दूध !
माँ जब बार - बार पड़ी पीछे-
कि बच्चे दूध पी ले ,
तो बच्चे ने रूठते हुए कुछ प्रश्न पूछे
माँ किसका दूध है !
माँ ने कहा गाय का
तो बच्चा झट से बोला -
अपनी गलती कर कबूल
ये है दूध-अमूल ।
कुश ने मुझे बताया कि
घर में प्रति लीटर पड़ता है रुपये अठारह
तो बीच का नफा निकल कर कैसे पड़े बत्तीस से कम,
दूध मुह्ने बच्चों का निकल जाये चाहें दम !
बीफ के शोकीन पैदा हो रहे हैं हमारे देश में ,
और बच्चे दम तोड़ रहे हैं गोपाल के देश में!
इतना तो कम से कम कर सकते हैं हम
खाने के सामान को पोल्य्थीन में भर कर
उसकी गाँठ न बांधें
और सिर्फ और सिर्फ अपने बच्चों का
भविष्य बचा लें !!!!
क्योंकि पोलीथीन खा कर गाय
घुट -घुट के प्राण छोडती हें
जितनी तकलीफ कसाई
के छुरे से
उन्हें नहीं पहुँचती है !
उससे अधिक हमारी वजह से झेलती है!!
Saturday, July 3, 2010
इससे पहले की बहुत देर हो जाये :अभिव्यक्ति
लश्कर के हमले
अमरनाथ यात्रिओं पे लाठीचार्ज !
जिन्हें मुसलमान भी मानते हैं बाबा - बर्फानी
नहीं कर सकते आदि-अनादि देव पर हमला
क्योंकि वह प्रथम पुरुष थे -
तब नहीं था फिक्रापरस्त लोगों का अमला-जुमला
सो चमक रही है सत्ता-परस्त लोगों की तरफ सीधी टोर्च !!
अमरनाथ यात्रिओं पे लाठीचार्ज !
नक्सली हमले
पुलिस मैं खौफ ,
पर जंगले मैं पल रहा हर बच्चा बे-खौफ !
जरा मतलब निकालो ,
कम से कम ओ सामर्थ्यवानों
मेरे देश को अब तो बचालो !
बहकने का हक सभी को है
यतीम को भी और मद मैं चूर अधिकारिओं को
गोवा - मंत्री को और राठोरों को भी
पर दोनों के प्रति है इतना क्यों भेदभाव ,
अकेले जी डी पी से नहीं चलेगी इस महान सांस्कृतिक
देश की नाव !
जीना तो पड़ेगा ही !:कविता
उदासी और ख़ुशी की -
एक ही है सबा
दोनों को दिल के बात कहने की मिलती है सजा ।
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
सो हंसी/ उदासी,
उदासी /हसी एक ही चीज हैं ,
दोनों का एक ही बीज है!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
दुनियां हमेशा सच्चे दिल वालों को सजा देती है
चाहें -
हों सतयुग में राजा हरिश्चंद्र
रोहिताश्व के शव -दहन के लिए
पत्नी को आधी साड़ी देनी पड़ी ।
भीष्म चुप थे पाप का अन्न खा खा कर
मुरलीधर आये जब सतीत्व पे विपदा पड़ी।
कन्हैया को दर -दर की ठोकर खानी पड़ी-!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
हम और आप क्या हैं दोस्तों
साक्षात् शिव को गरल की प्यास
बुझानी पड़ी
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
सो बाहर के लिए दिल को पत्थर बनाना होगा
अपनों को किसी भी तरह बचाना होगा !
क्योंकि -
पत्थर मैं भी जीवन स्पंदित होता है
ये बात सच है !!!!!!!!!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
समझ , समझने वाले
अच्छों को जिन्दा रहना ही चाहिए !!!!!!!!!!!!!!!!
मगर जीना तो पड़ेगा ही .......
Tuesday, June 29, 2010
ग़ज़ल: फूल से फूल की बात करो
ग़ज़ल -मजबूर चीखों का
जब निकाला गया इतिहास मजबूर चीखों का ,
मानवीय संवेदना की भारी कमी पायी गयी !
मछलियाँ भी उस हर हाथ को अब पहचानती हैं,
जिस हाथ मैं परवरिश की कुछ भी कमी पाई गई !
लोग कहते हैं महलों मैं कुछ भी नहीं होता है ,
खंडहरों मैं फिर क्यों मजदूरों की हंसी पाई गयी !
अजय बड़ी ही मुश्किल है अब इस दुनियां में जीना ,
दूध -मुंहे बच्चों में मां के दूध की कमी पायी गयी !
Monday, June 28, 2010
ग़ज़ल;- टूटन का इलाज
वो सबसे मंहंगी और सस्ती चीज होती है !
कई चारगार आये इसे समझने के लिए ,
ये पहेली किसी पहलू से हल नहीं होती है !
दर्द जैसा आपका है सबको भी होता ही है ,
ये तो सोने के बदले बालू की खरीद होती है !
'अजय' क्या करें और क्या न करें को छोड़ो ,
दर्द की तासीर जिन्दगी से बड़ी नहीं होती है !
Friday, June 25, 2010
ज़िन्दगी!
Friday, June 18, 2010
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !: जरूर ध्यान दें
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !
हम अपनों के प्रति /
मित्रों के प्रति /
गरम हैं -
लेकिन गैरों के लिए एकदम नरम हैं
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !
हम अपनों से शूल हैं ,
किन्तु विदेशों में काफी कूल हैं ,
गोरी चमड़ी देख फिसल जाते हैं
माँ-बाप को कहते हैं -
प्रकृति की भूल हैं ।
अपना जान भी दे दे तो
कोई परवाह नहीं
दूसरा रुमाल दे दे
तो बदल दें भेष हैं.
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !
ये बनावटी सोच जब तलक होगी अजय
तो याद रहे बाकि दुनियां के लिए
हम सिर्फ -
शुन्य और शेष हैं !
जी हाँ ! हम नरम देश हैं !:
Friday, June 11, 2010
भोपाल गैस !
- भोपाल गैस
-सिटी गैस
-सी अन जी गैस
-सी बी ऍम गैस
-प्राक्रत्रिक गैस
और न जाने कितने नाम मुझे याद आये ,
पर जब बच्चे ने मुझे पूंछा कि -
पापा "भोपाल गैस कांड क्या है !"
तो दिन-दहाड़े की नंगी सच्चाई को
खालिस कंट्रोवर्सी कह कर ही पीछा छुड़ा पाये !
लोग कहते हैं -
*एन्देरसों को मेहमान -नवाजी से छोड़ा
*टेक्नोलोजी पुरानी थी
*सरकारें जानी पहचानी थी
*अल्पसंख्यकों का हित साधती -
मौत को पहले पैसा फिर
नोटों को वोटों मैं बदलने का हुनर जानती थी ।
पापा मत सुनाओ हमें ये कहानी -
ज़बाब दो !!!!!
बेटा सचमुच ही ये एक कोंत्रोवेरसी है
यही देश की डेमोक्रेसी है।
ज्यादा दिमाग न खा न लगा -
पगला जायेगा ।
कीटनाशकों से भरा अन्न भी -
न खा पायेगा !!
Thursday, June 10, 2010
पेड! "बरगद" का! (www.sachmein.blogspot.com)
Tuesday, June 1, 2010
जो मय तेरे नाम से खिंची न गयी हो : ग़ज़ल
वो मय जो तेरे नाम से खींची न गयी हो ,
उस शराबे जाम का मुझे कोई काम नहीं है !
सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,
जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !!
मेरे लिए उस कायनात का मतलब नहीं ,
जो अमानत तुझसे कम दाम की नहीं है !
अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,
उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है !
Sunday, May 16, 2010
फिर करें शुरू !
Monday, May 3, 2010
पदम् पुरुस्कार
काली करतूतें "उनकी" भविष्य में कोई भी तंत्र न पकड़ सके ,
मौजूदा व्यवस्था ने "उनको" पदम् पुरुस्कार प्रदान कर दिया !
लाखों मुकदमों की बेचारिगी से सरावोर न्यायाधीश के सामने ,
कुछ काले कोट वालों ने असली दुराचार को अप्रमाण कर दिया!
मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं अजय आज के भूख-ज़दा माहौल में ,
कितनी सफाई से जिन्दा-आदमी को निर्विकार जान कर दिया!
मुफलिसी खुदा की नियामत है, फटे-हाल रहना एक इबादत है ,
इन फलसफों ने इंसानियत को तार-तार कर विज्ञान कर दिया !
Monday, April 26, 2010
बन रहा क्रांति योग ...क्रमशः -एक अपील शिद्दत से पदने वालों के लिए
Friday, April 23, 2010
बन रहा जन-क्रांति योग ! अवश्य पढ़ें
Saturday, April 3, 2010
ग़ज़ल :टी-२० के बल्ले में
कुछ वर्दी वाले जब से आये रहने घर के निचले तल्ले में!
फांसी-फंदे का इन्साफ मिला अब सबसे सच्चे इन्सां को ,
काजी का इमां भी डोला दुनियां के फर्जी हल्ले -गुल्ले में!
काश्तकार कर रहे ख़ुदकुशी नित -नयी तकनीकी के दौर में,
वज़ीरे -फसल सर तक फंसे हुए हैं, देखो टी -२० के बल्ले में !
क्या हो रहा ये सब अजय आज के इस दम -घोंटू माहौल में ,
माँ रखती है जहर की पुडिया अब तो अक्सर अपने पल्ले में !!
Sunday, March 28, 2010
ब्लौगर की कहानी -एक कविता
मैंने अब अब कुछ कुछ
पहचाना है!
जिन्हें जानता भी नहीं
सीने से उन्हें लगाता है ,
पीड़ा पर उनकी आंसू बहुत बहाता है
लिखना तो एक बहाना है ,
मैंने अब कुछ कुछ पहचाना है ........
लोगों की तरह सामने आने वाला
कवि मन उसका भी
चाहत मैं होगा तडपा
इज़हार किया होगा उसने भी
मन माफिक पाने का
किन्तु , अंतर्मन उसका बेगाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............
अपने जैसों का ही बचा एक सहारा है ,
सारे ऐसे ही अच्छे भावों को
हम सबको ही मिलाना है
लिखना तो एक बहाना है ...............
Wednesday, March 24, 2010
राम नवमी -एक गीत
राम नवमी के नाम
और भूल से सही ,कर सकूं
राम से कुछ काम !~
कुछ अधूरे भी रहे होंगे
राम तेरे कुछ काम
जैसे रावन का खात्मा हर
युग मैं करने का संकल्प
शोषित कुचलों वनवासियों को
गले लगाने का अनवरत प्रकल्प
जन जन में हो राम का नाम
कर सकूं राम से कुछ काम .....
मर्यादा के कुछ तो पन्ने
अपने जीवन में उतारूं
कम से कम आश्रित को तो
मौत के घाट न उतारूं
बच्चों को पिलाने वाले दूध में
जहर न मिलाऊँ
अर्थी के तो न लूं दाम
कर सकूं राम के कुछ काम .........
राम नाम जपने का मन्त्र
जिसने परोपकार के लिए दिया
कुछ तो व वापस कर जाऊं
उरिण हो कर कुछ तो मानव कहलाऊँ
शांत भाव से जिससे कटे
जीवन की ये शाम
कर सकूं राम के कुछ काम ......