कि फिर करें शुरू ,
आप चाहें जितने हों बड़े -
या फिर कहीं भी हों खड़े !
 
जिन्दगी न किसीके मनमुताबिक चली है 
न रुकी है !
अपनी रफ़्तार से चलते -२ 
कुछ पल आपके साथ भी 
चली है !!
 
काहे कि आपाधापी 
क्योंकर भागमभाग 
लाओ विश्रांत विचार -
हर लम्हे के साथ करो प्यार
न कोई मिले तो   कुदरत के साथ ही -
बाँट लो खुद को 
और सीखो धीरे -२ बढ़ने का सलीका ,
अपना लो सूखने के बाद भी 
हरियाने का तरीका !
आखिर क्यों चाहिए एक अलग पहचान 
कई दरख़्त वीराने में ही  उगते हैं  
अपनी पूरी यात्रा तय करने के उपरांत ,
हो जाते हैं शांत !
यह भी सच है की जीवन दायिनी जड़ी बूटी 
उन्ही वृक्षों में ही होती है 
जहाँ होता है एकांत !