Wednesday, April 18, 2012

बस्ती है .

दिल का बसना सरल नहीं होता
उजड़ना सरल है होता
बस्ती बसाना कोई बच्चों का खेल नहीं
ये बस्ती है बस्ते-बस्ते ही बस्ती है।

मुफ्त में हमें मौत भी रास नहीं आती
तेरा मेरी बला से सस्ता हो या महंगा
मेरे किस काम का
हस्ती की फिर क्या हस्ती है ।

Tuesday, April 17, 2012

सोने को दांव ..ग़ज़ल

जो भी पाया है , झुठलाया है
जो खोया उसे दिल लगाया है

मिटटी खरीदने के बदले मैंने
सोने को ही दांव पे लगाया है

बादशाहत जाये तो चली जाये
मुफलिसी को ही गले लगाया है

गजलों को वाह-वाह नहीं मिली
बच्चा फिर स्याही ले आया है

Saturday, April 7, 2012

ग़ज़ल : अज़ब तजुर्बा

अज़ब तजुर्बा
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ज़िन्दगी का भी अज़ब -अज़ब तजुर्बा है मेरे दोस्त ,
किसी का एक दो बार किसी का कई मर्तबा है दोस्त !
कोई लाखों पाकर भी खालिस ही रह गया दुनियां में,
कोई मुफलिसी में भी ज़न्नत की शहंशाही पा गया मेरे दोस्त !
कोई शाही मज्जिद से भी बिना सजदा किये वापस आया ,
किसीको टूटे घर की चौखट भी काबा कर्बला है मेरे दोस्त !
नमूने हज़ार और नायाब हैंबनने के बाज़ार में हर ओर मौजूद ,
कोई मिट्टी का और कोई सोना बनने का हुनर लाया मेरे दोस्त !

कहाँ खो गए वो पाखी

कहाँ खो गए वो पाखी !!

तुतलाकर बच्चे ने पापा से पुछा:
पापा , पापा -अपने बचपन के विषय में
कुछ बताइए
पापा ने कहा
बेटा पहले आप बताइये
घोंसला किसे कहते हैं
नहीं पता
बेटा बोला , आप बताएं
पापा बोले
बेटा- घोंसला ,पीली गौरिया नामक चिड़िया बनाती है
उसमें अपने बच्चों को प्यार से सुलाती है /दुलराती है

पर पापा अब गोरिय्या नहीं दिखती है
आखिर अब वो कहाँ रहती है
पापा के माथे पर शिकन आई
धीरे से बोले
अरे मेरे भाई
जैसे इस देश से ईमानदारी तिरोहित हो गयी है ,
हमारे बचपन की गौरिया भी कहीं खो गयी है !
गौरिया क्या
बरसात में निकलने वाली राम जी की मखमली गुड़िया
भी प्रकृति का नेतृत्व नहीं करती
हमारे देश के नेतृत्व जैसी हो गई है
जुगनू की चमक सी जनपथ में खो गई है !!
अब कुछ दिन में आदमी भी नहीं मिलेगा
धड़ के ऊपर सर ,दो हाथ दो पैर वाली कोई
अजीब सी चीज़ घूमती नज़र आएगी
मेरी ये पञ्च-तत्व दुनियां
जिन्दा शमशान हो जाएगी !!!!!!
जिन्दा शमशान हो जाएगी !!!!!!!!!
तुम इसे बचाना मेरे बच्चे
हम तो इसे सहेज कर नहीं रख सके
हीरे जवाहरात के बदले
पाए कुछ टके!