Sunday, August 5, 2012

geet


हवा भी है कुछ बंधी बंधी
 समां  मैं  है अजीब बेखुदी

तुम हमारे न हूए ये अलग बात है ,
ये न भूलेगी पूरी की पूरी  नदी !

सदियों  है तेरी यादों ने रुलाया
चेहरा दिखाया सिर्फ वादों मैं
हमने न किसी को चाह न चाह पायेंगे
आपकी ही यादों मैं मिट  जाएंगे

क्यों नज़रों मैं अब  आती नहीं
क्यों किनोरों से लोट जाती नहीं

हम चाहते हैं नहाना तुममें
क्यों पानी बनकर तुम आती नहीं

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