Saturday, September 26, 2009

जरा सोचें और अच्छे के लिए एक-जुट हों -एक विचार :क्रमांक 7

कई बार इतिहास ने देखे हैं वो मंज़र जब !

लम्हों ने खता की सदियों ने सजा थी पाई !!

जरा सोचिये.......

**सलमान टीवी शोव्स मैं खुले आम नंगा बदन दिखा रहे हैं .....आप चुप हैं और भारतीय संस्कृति रो रही है......

***जसवंत साब को समझ नहीं आया कि सरदार को कठगरे मैं रख कर वो कूद ही गए mediabazi मैं ......... जरा सोचिये। राष्ट्रिय निर्णयों मैं मौखिक भाष लिखित से ज्यादा प्रभावी होती है.........

पिल ७२ का एड मात्रत्व को कहाँ ले जायगा .दवाओं का टीवी एड क्यों जिसको बिना मेडिकल प्रेस्क्रिप्शन के नहीं लिया जा सकता है। जरा सोचिये......इससे पहले कि देर हो जाए .... दवाएं परचूनी का आइटम नहीं ....

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