Wednesday, November 11, 2009

शिद्दत के साथ जुदा हुए, लेकिन क्या सचमुच हुए : ग़ज़ल

इतने शिद्दत के साथ जुदा हुए, लेकिन क्या सचमुच लोग जुदा हुए !
दबे - पाँव वक़्त ने जब अलग किया तो अब कदम क्यों रुक गए !!

आदमी वो ही वक़्त के गुलाम होते हैं , जिन्हें मुफलिसी नहीं आती !
वरना , जलते पत्थरों के गुजरने के बाद रास्ते क्यों घास के हो गए !!

मंज़र हमेशा मन-माफिक रहेँ, ये तो जीने कि कोई शर्त नहीं होती !
परवादिगार से गुजारिश -जिसके हों एकबार ,ता -उम्र उसके हो गए !!

तकाज़ा करने सफर का जरूर ही कोई आखिरी वक़्त आएगा अजय !
हिसाब तुझे ही अपना देना है ये जान ,दूसरों ने जो काम किए न किए!!

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