Tuesday, January 15, 2013

संक्रांति -गीत



संक्रांति -गीत 

अब गिनती के ही  हैं -
 बचे !
अच्छा लिखने /बोलने /पढ़ने वाले 
समझने वाले ,
समझाने वाले .

अनुदित विषयों पर पोथी भर-भर 
लिखने वालों की बाज़ार में 
खूब लग रही हैं -बोलियाँ ! 
मौलिक रचना कर्मियों के जरा 
कम सजे पन्नों की 
जल रही हैं -होलियाँ !
ठोकर खा पहले से गिरे हुए को 
मिटाना और गिराना 
मर्दानगी का दंभ मन जा रहा है
झोपड़ियाँ गिराना और फिर  
उन पर महल सजाने वालों को 
लोकतंत्र में -
स्तम्भ माना  जा रहा है .

दोस्तों - एक  निहायत मतलब परस्त
भ्रान्ति हो रही है 
इसकी दिशा बदलाव के लिए 
संक्रांति जरूरी हो रही है .
क्योंकि -
अब गिनती के ही  हैं -
 बचे !
अच्छा लिखने /बोलने /पढ़ने वाले 
समझने वाले ,
समझाने वाले .

-डॉ अजय गुप्त 

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