Thursday, September 24, 2009

एक विचार -क्रमांक 6

थोड़ा-२ आगे बढें, रुकें और सोचें कि रास्ता सही चुना है कि नहीं -यह केवल पहले दौर मैं करना है :निर्णय लेने के दिन ही .acid टेस्ट -क्या ये हम सबके सामने कर सकते थे ,यदि दिल कहे हाँ तो आप सही रस्ते पर हैं । ये मेरे नाना जी ने १९८२ मैं कहा था :

यदि जीवन जीने के पीछे कोई तर्क नहीं है !
तो रामनामी बेचकर खाने और देह व्यापर करने मैं कोई फर्क नहीं है !!!!!!

हजारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन मैं कोई दीदावर पैदा !!

4 comments:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

मेरे विचार में,चलिये खुशी बांटें, Gyaan नहीं, वो तो देर सबेर सब को मिल ही जाता है!
हंस कर या रो कर!

Admin said...

वाह! चले चलो! बडे चलो!

Udan Tashtari said...

यदि जीवन जीने के पीछे कोई तर्क नहीं है !
तो रामनामी बेचकर खाने और देह व्यापर करने मैं कोई फर्क नहीं है !!!!!!

-बहुत सही!!

anant vijai bhartiya said...

kamaal hai,dunia ke sabse purane vyapaar par, jo sabhayata ke saath viksit hua, aaj ye ghrana kaisee !! aur vo ke jise hum ao aap dharm pukarte hai, jisne manushyata ke mathe par sadaiv kalank pota hai, ye gungaan kaisaa !!

" zindaghi kya hai ?
Gunah -e - aadam !
Aur Zindaghi hai to,
gunahgaar hai hum".