Tuesday, November 10, 2009

क्या अच्छा - क्या सच्चा है !

जी करता है लौट चलूँ अब वापस , जहाँ से आया था !
समझ नहीं आया कि क्या अच्छा और क्या सच्चा है !!

दुनिया भर के सारे पाप किए और किया नशा हर मैंने !
फिर भी सीधे लगने वालों से मन अब भी मेरा कच्चा है !!

दुनियावी लोगों से उकता कर भी कुछ करना था जीने को !
दुश्मन के घावों को सहलाने मैं मन मेरा अब भी बच्चा है !!

मुश्किल है अजय कि क्या करें और क्या न करें ,फिर भी !
जीने का अंदाज हमारा औरों से क्या अच्छा- क्या सच्चा है !!

1 comment:

निर्मला कपिला said...

मुश्किल है अजय कि क्या करें और क्या न करें ,फिर भी !
जीने का अंदाज हमारा औरों से क्या अच्छा- क्या सच्चा है !!
बहुत बडिया है जीनी का अपना ही अंदाज़ होना चाहिये शुभकामनायें