Sunday, March 14, 2010

लिखे को समझने वाले ...एक ग़ज़ल

ग़ज़ल
दो-पहर , धुप से बचोगे तो शाम का कुदरती लुत्फ़ कैसे उठा पाओगे ,
हर मुश्किल लम्हा हंस के जियो वर्ना यूँ ता-उम्र कैसे जी पाओगे !!
लिखना है तो फकत अपने /अपनों के लिए ही लिखा करो "अजय " ,
तुझे , तेरे लिखे से कोई समझ सके - ऐसे पढने वाले कहाँ से लाओगे!!
शहर की आपाधापी और थकन किसी भी नशे से नहीं उतरने वाली ,
सुकून तभी मिलेगा दोस्त जब बिना काम भी लोगों के घर जाओगे !!
हमारे पास यूँ तो खालिस अपना कहने को कुछ भी नहीं है यारब ,
फिर भी मिलने जब भी आये ,तरोताजा दोस्ती की महक ले जाओगे !!

1 comment:

Udan Tashtari said...

आ गये पढ़ने और आनन्द भी आया.