ग़ज़ल
वो मय जो तेरे नाम से खींची न गयी हो ,
उस शराबे जाम का मुझे कोई काम नहीं है !
सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,
जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !!
मेरे लिए उस कायनात का मतलब नहीं ,
जो अमानत तुझसे कम दाम की नहीं है !
अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,
उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है !
5 comments:
"अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,
उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है!"
बहुत सुंदर
सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,
जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !
बहुत खूब...बढ़िया है
fizaa mein hee muhabbat ghuli lag rahi hai
sundar panktiyaa
वाह!ख्याल अच्छा है!
bahut khub
फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
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