Tuesday, June 1, 2010

जो मय तेरे नाम से खिंची न गयी हो : ग़ज़ल


ग़ज़ल

वो मय जो तेरे नाम से खींची न गयी हो ,

उस शराबे जाम का मुझे कोई काम नहीं है !

सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,

जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !!

मेरे लिए उस कायनात का मतलब नहीं ,

जो अमानत तुझसे कम दाम की नहीं है !

अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,

उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है !





5 comments:

राकेश कौशिक said...

"अजय खुदा सी इबादत न हो गर मुह्हबत में,
उस इश्क का कोई दुनियावी पैगाम नहीं है!"
बहुत सुंदर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सावन की उस पहली बरसात का क्या करना ,

जिसकी पहलीबूँद पे तेरा नाम नहीं है !

बहुत खूब...बढ़िया है

sonal said...

fizaa mein hee muhabbat ghuli lag rahi hai
sundar panktiyaa

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

वाह!ख्याल अच्छा है!

Shekhar Kumawat said...

bahut khub



फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई